ज्योतिष और उच्च शिक्षा

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ज्योतिष उच्च शिक्षा के चयन मे कैसे सहायक हो सकती है ?

 आज के समय में कौन ऐसा है जो सफलता नहीं चाहता। शिक्षा इस लक्ष्य को पाने मे बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। 


आज के प्रतिस्पर्धा के समय मे जब इतने सारे माधयम और विकल्प हैं तो सही चुनाव माता-पिता एवं छात्र के लिए एक चुनौती से कम नहीं है।

उच्च शिक्षा हर एक छात्र पाना चाहता हैं परन्तु उससे भी बड़ा लक्ष्य है कि परीक्षा मे अच्छे अंक आये ताकि प्रतिभा सूची मे भी उच्च स्थान आये और  आगे चलकर अच्छी नौकरी मिल सके या अपना वयवसाय भी करना हो तो सफलतापूर्वक कर पाएं।

जब लोग अपने बच्चों के विषय मे ज्योतिष के अनुसार जानकारी करना चाहते हैं तो मैने अनुभव किया हैं कि  लोग शायद ही कभी बच्चे के स्वास्थ के विषय मे प्रश्न करते हों। यहाँ तक की छोटा बच्चा जिसकी जन्म कुंडली अभी अभी बनाई गयी हैं वहां भी परिवारजन बच्चे की शिक्षा के विषय में प्रश्न स्वास्थ से पहले करते हैं या यदि ज्योतिषी खुद न बताये तो स्वास्थ के विषय मे विशेष नहीं पूछते। तो यह सिद्ध होता है की हम भारतियों के लिए शिक्षा सर्वोपरि है।

इस लेख मे मैं शैछिक स्तर पर ज्योतिष विद्या  की भूमिका पर संक्षेप में  प्रकाश डालूँगा।

ज्योतिष मे किसी भी वयक्ति का शैछिक स्तर क्या होगा यह तो पता चलता ही है साथ ही वह कितना बुद्धिमान होगा यह भी पता चलता है। यहाँ बुद्धिमान का तात्पर्य सीखने और समझने के क्षमता से है , और साथ ही स्मरण शक्ति का भी अनुमान लगाया जा सकता हैं। 

 

इस लेख मे किसी भी ज्योतिष तकनीक एवं नियम का उल्लेख नहीं करूंगा बल्कि जन्मकुंडली विवेचना कितनी सार्थक हो सकती है इस बात को केंद्र मे रखकर ही बात की जाएगी।

बात आगे करने से पहले यह भी बता देना चाहता हूँ कि कुछ जगह पर जन्म कुंडली नहीं होती, या जन्म से जुडी जानकारियां अधूरी या अशुद्ध होतीं हैं जैसे समय का सही पता न होना , दिनांक मे भ्रम होना इत्यादि। ऐसे लोगों के प्रश्न ज्योतिष से उत्तर देना संभव है और यह एक सटीक तरीका है।

 

शैक्षिक स्तर की विवेचना :-   
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ज्योतिष विद्या द्वारा जन्म कुंडली या प्रश्न कुंडली विवेचना से यह देखा जाता है कि  बच्चे मे विद्या का योग है कि नहीं। यह कोई आवश्यक नहीं है कि  यदि परिवार मे सब उच्च शिक्षित हैं तो बच्चा भी उच्च शिक्षित होगा या यदि सब अल्प शिक्षित हैं तो संतान भी कम पढ़ी लिखी होगी।

 

 विद्या का योग देखते समय जन्म कुंडली मे मानसिक ध्यान जिसका स्मरण शक्ति से सीधा सम्बन्ध है , समझने की शक्ति आदि कैसी है। जन्म कुंडली मे चंद्र, बुध, गुरु आदि की स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। 

 

 यह भी आवश्यक है कि प्रथम भाव का स्वामी (लग्नेश) की स्थिति भी सुढ़ृड़ होनी चाहिए अन्यथा जन्मकुंडली के अच्छे योग भी सही ढंग से परिणाम नहीं दे पाते। तीसरे एवं पंचम भाव से बच्चे के मानसिक झुकाव एवं सोचने समझने की शक्ति का आंकलन किया जाता है।

शिक्षा मे चौथे भाव का बहुत महत्व है। इस भाव से जीवन सुख, माता , चल अचल संपत्ति, वाहन आदि का विचार करा जाता है और, शिक्षा का विचार भी इस भाव से होता है। यह भाव यह दर्शाता है कि क्या बच्चा शिक्षित होगा या नहीं , यानि विद्यालय जायेगा या नहीं। 

 

इस भाव का सम्बन्ध नवम भाव (उच्च शिक्षा एवं अनुसंधान) से हो तो उच्च शिक्षा का योग बनता है। ग्यारवें भाव  से सम्बन्ध उच्च शिक्षा के  प्रबल योग बनाते हैं। तीसरा भाव , चौथा भाव , नवम भाव , ग्यारवा भाव एवं बारहवा भाव सम्बंधित हों तो विदेश शिक्षा के योग बनते हैं।

उपरोक्त विवेचना मे जो दूसरा महत्वपूर्ण भूमिका हैं वह महादशा और अन्तर्दशा की है।  छात्र जीवन मे महादशा और अन्तर्दशा यदि उपरोक्त भावों एवं / या  ग्रहों की हों तो बच्चा शिक्षा मे अच्छा प्रदर्शन करता है। यदि उपरोक्त भावों एवं ग्रहों का सम्बन्ध दसवे भाव (रोजगार एवं वयवसाय ) से हो तो बच्चा पढ़ने के बाद अपनी  उच्च शिक्षा से सम्बंधित क्षेत्र मे ही रोजगार या व्यापार करता है।

एक ज्योतिषी को बच्चे के स्वास्थ एवं आयु की मौन रूप से विवेचना कर लेनी चाहिए और बालारिष्ट योग और दूसरे अरिष्ट योगों का आकलन कर के ही फल कहना चाहिए।


शैक्षिक विषयों का चुनाव :-

शैछिक विवेचना से बड़ी कक्षा मे विषय के चुनाव मे भी बड़ी मदद मिल सकती हैं। पूर्ण विवेचना मे बच्चे के मानसिक बल , शिक्षा योग, मानसिक झुकाव एवं आने वाले समय मे दशा इत्यादि की विवेचन के आधार पर भ्रम की स्थिति काफी कम की जा सकती हैं।

छात्रों की दूसरी समस्यां :-

पढाई के साथ साथ आज छात्र कई और भी चीज़ों के संपर्क मे आने से ज्यादा जानकारी रखते हैं और कई तरह की गलत संगत और व्यसनों के भी शिकार हो जाते हैं।
कभी कभी छात्र का पढाई मे रुझान नहीं होता परन्तु और कई तरह की प्रतिभा उसमे होतीं हैं।

उपरोक्त सभी तरह की स्थितियों मे ज्योतिषीय विवेचना  मार्गदर्शन का काम कर सकती हैं। और समय रहते सही कदम उठा कर बच्चे को सही राह पर डाला जा सकता हैं।

नए अवसर :-

ज्योतिषी को भी नए नए क्षेत्रों और विषयों के बारे मे पढ़ते रहना चाहिए और ज्योतिष मे अनुसन्धान करते रहना चाहिए। आज बहुत सारे नए विषय और क्षेत्र हैं जिनका ज्योतिष ग्रंथों मे कोई उल्लेख नहीं है अतः यह अनुसन्धान का विषय है कि यह नए विषय ज्योतिष विवेचना के द्वारा माता-पिता को बताये जाएं  और सही मार्गदर्शन किया जाए।

बच्चों मे तनाव :-

आजकल बच्चे भी डिप्रेशन और तनाव के शिकार हैं। बच्चों की आत्महत्या के  कई  सारे समाचार सुनने को मिलते हैं। बच्चों का क्रोधी होना व , या गुमसुम रहना आदि सब मानसिक तनाव के लक्षण  हैं।

ज्योतिष इस क्षेत्र मे अग्रिम रूप से विवेचना कर के माता-पिता को सचेत कर सकती है।

ज्योतिष उपाय:-

जैसा की ज्योतिष उपाय के लेख मे मैं यह उल्लेख कर चुका हूँ कि  ज्योतिष कार्मिक गति नहीं बदल सकती परन्तु ज्योतिषीय उपाय कई तरह के  अनिष्ट से हमारी रक्षा करते हैं और अरिष्ट के प्रभाव को कम करते हैं।
यदि ज्योतिषी किसी प्रकार के उपाय के सुझाव दें तो यथा संभव बच्चे से करवाना चाहिए और अरिष्ट के प्रभाव को कम और शुभ प्रभाव को बढ़ाना चाहिए।

और अंत मे :-

जन्म कुंडली की सही विवेचना के आधार पर ही माता-पिता को अपने बच्चे से शैछिक अपेक्षा रखनी चाहिए। कभी भी मछली को दीवार पर चढ़ने की क्षमता नहीं आंके | दोनों की अपनी छमता हैं। हर बच्चा अनोखा है। उसे उसकी क्षमताओं के लिए सराहें और आगे अवसरों का लाभ उठाने लायक बनने मे सहायता करें। यही माता-पिता की सही भूमिका है।  सिर्फ अंकतालिका मे अच्छे अंक लाने की होड़ मे बच्चों के जीवन को दांव कर मत लगाएं।

सप्रेम |

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